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The Thought Leakage

Writings of Expressions and Experiences

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Women

कहानी तक

तू किसी किताब का कवर लगती है,
हक़ीकत नहीं
किताब में शायद तेरी कहानी का अंत मीठा हो,
हक़ीकत पता नहीं
आखिरी लोकल से तू मंजिल तक पहुँच जाएगी
कब तक पता नहीं
तू किताब में ही अच्छी लगेगी जहाँ
कंबल मिलने की उम्मीद होगी
हक़ीकत में पता नहीं
तेरी झोली में ना जाने क्या खजाना हो
या शायद नहीं,
ज्यों ये सिर्फ तकिया ही बन पाया
और तू बेफिक्र साड़ी ओढ़े
जिस्म की तपन छिपाती रही
ट्रेन में बैठे सभी घर पहुँच ही जाएँगे
तेरा पता नहीं
सभी लौटें है घर को
तेरा पता नहीं
तेरी दौलत एक साड़ी, एक चश्मा, बैग
से झाँकती एक तिरपाल की चट्टी
जहाँ तू रुके
वहीं घर तेरा,
…मेरी कहानी में तू यूँ ही नज़र आई
हक़ीकत पता नहीं ।

दैव्य तुम हो

तुम सौम्य हो, सौंदर्य हो
रौद्र का पर्याय तुम ही
शृंगार रस का मूल तुम हो
वीर सींचती राग तुम हो
विजय शंख नाद तुम हो
हर युद्ध में कलंकित
हार का अभिषाप तुम हो
महापुरूषों के दाह की
द्रौपदी, जानकी तुम्ही हो
आत्मा की क्रूरता से साक्षर
देह का व्यापार तुम हो
वात्सल्य हृदय है तुम्हारा
क्षमा का भंडार तुम हो
प्रसूती की पीड़ा तुम हो
आँगन की लज्जा तुम हो
प्रियतम से चोट खाई
आँचल छिपाती तन नील तुम हो
अश्रू को आँख तिनका बताती
ब्याहता भी तुम ही हो
गंभीर तुम हो, धीर तुम हो
एक कलेजे में संसार बाँधती
विफल हाथों को संकल्प बाँटती
प्रियसी तुम हो, मातृ तुम हो
हो अथक संयमी तुम्ही
तद्दपि पौरूष का अपमान तुम हो
वैराग्य का काल तुम हो
परम पराक्रमवान तुम ही
फिर भी तेज हारती यौवन तुम्ही
करूणा का, कौशल का, कर्तव्य का
माप तुम ही,
निःसंदेह दैव्य तुम ही
निःसंदेह दैव्य तुम ही!

आग लगी

अहो क्या बात हुई
कि घर लड़की ना आई
कहीं दिवानी फिरती वो
नाम डुबा ना आई|
बरसाती आधी रात गई
ना ख़बर करी
कई परवाने हुआ होंगे
जो बला बुलाती कहीं
उन्हीं में उसकी रात कटी?
लगे पड़ोसी बात बनाने
कि क्या बात हुई,
कि रात गई पर
घर लड़की ना आई?
पिता आँख फिर अनल भरी
जो आई ना भीतर एक घड़ी
तो मुहँ फेरे उल्टे लौट चले
जो आ गई नज़र, गर हाथ पड़ी
तो ख़ुदा ख़ैर करे उसकी
वो दोज़ख की आग जले |
आग जले, आग जले|
गला कलम ना किया अगर,
तो मैं भी उसका बाप नहीं|

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