1.
लोग कहते हैं कि इस शहर ने करोड़ों को बसेरा दिया
कब्र भर जमीं को यहां बसेरा कहते हैं
2.
इन खोखली बिल्डिंगों में हैं
खोखले दफ्तर
उन खोखले दफ्तरों में चलती
ये खोखली जद्दोजहद
इस खोखले से दिन का निष्कर्श
बोझिल आँखें, थका शरीर
1.
लोग कहते हैं कि इस शहर ने करोड़ों को बसेरा दिया
कब्र भर जमीं को यहां बसेरा कहते हैं
2.
इन खोखली बिल्डिंगों में हैं
खोखले दफ्तर
उन खोखले दफ्तरों में चलती
ये खोखली जद्दोजहद
इस खोखले से दिन का निष्कर्श
बोझिल आँखें, थका शरीर
छठी मंजिल पर एक फ्लैट की मेरी खिड़की से 12 खिड़कियों से 6 घरों की जिंदगियां साफ नजर आती हैं। आसमान नहीं दिखता, तारे नहीं दिखते, चाँद ढूँढ़ते-ढूँढ़ते सुबह हो जाएगी पर कंक्रीट के अलावा कुछ नहीं दिखता। तनीषा और अनन्या नाम की इन दो जुड़वा बिल्डिंगों में फासला इतना कम है कि ज़मीन भी नज़र नहीं आती। इन 6 घरों में घट रहे जीवन ही उबा देने वाले हफ्तों का साथ बनते हैं जब ना पैसे खर्च करने की इच्छा होती ना सामर्थ्य। इस शहर में बाहर कदम रखना मतलब जेब ढीली करना।
इन 6 घरों में से एक के पर्दे हमेशा अँधेरा किए रहते हैं, जाने कौन सा संसार बसा है वहाँ। एक घर के पर्दे हटे हैं, घर में उजाला है, पर घर खाली सा लगता है। ना सोफा है, ना बिस्तर, ना अलमारी, शायद कोई अकेला रहता होगा, कम जरूरतों वाला। खोखले कमरों में किसी की दिलचस्पी नहीं होती।
मेरी बिल्डिंग अनन्या है, और मुझसे करीब 10 फीट की दूरी पर तनीषा के पाँचवे फ्लोर की दो खिड़कियों से मुझे एक बूढ़ा दंपति दिखता है । कुछ साठ-सत्तर के करीब अंकल की उम्र लगती है । शक्ल पर गौर नहीं कर पाती लेकिन अकसर किचन में रात को कुछ टटोलते नज़र आते हैं। रात 10:30 बजे घर पहुँची और अंकल किचन में हाथ फिराते दिखे। आंटी पहले कमरे में बत्तियाँ बुझाए सो रही हैं। अंकल बंबई की अक्टूबर की गर्मी में बिना बनियान के किचन में कुछ बना रहे हैं। खाना तैयार है और थाली में परोस भी लिया है। शायद मसाले वाले चावल बनाए हैं और साथ में रायता सा कुछ दिख रहा है। अंकल थाली लेकर पहले कमरे में आ जाते हैं। आंटी अब भी सो रही हैं। दबे पाँव अंकल एक कुर्सी बिस्तर के पास खींच लाए हैं, और गोद में थाली रखकर खाना शुरू कर देते हैं। आंटी अब भी गहरी नींद में हैं। बिना बत्ती जलाए किचन से आ रही रोशनी में ही अंकल खाना खत्म करते हैं, किचन में जाकर साफ-सफाई में जुट जाते हैं। किचन की लाइटें बंद हो जाती हैं और अंकल उस कमरे में चले जाते हैं जहाँ तक मेरी खिड़की की लाइन ऑफ विजन की सीमा है।
कुछ 15 मिनट बीता होगा कि आंटी पहले कमरे में उठ बैठीं हैं। घर में बत्ती बंद है, बाहर जो उजाला है उसी से रोशनी है। आंटी उठकर मेरी खिड़की की सीमा के पार वाले कमरे में जाती हैं और तुरंत लौट आती हैं। अंकल अब तक नींद में सैर का रुख कर चुके होंगे। शायद यही हुआ होगा, शायद आंटी ने उन्हें जगाना सही ना समझा हो। इधर-उधर एक-आध बार ताकती हैं और अब रंग बिरंगी रोशनी से कमरा भर गया है। टीवी चालू हो गया है और आंटी बिस्तर के एक कोने पर बैठी हैं। भरसक इंतजार कर रही हैं – नींद का, रात ढलने का, या किसी के साथ होने का। साथ होकर भी दोनों कितने अकेले से लग रहे हैं।
तनीषा की छठी मंजिल यानी मेरे सामने वाली खिड़की में एक संपूर्ण परिवार रहता है। संपूर्ण इसलिए कि यहाँ सिर्फ एक बूढ़ा जोड़ा नहीं रहता। यहाँ एक दादी हैं, एक नौजवान पोता और एक अधेड़ पति-पत्नी। उनके घर की दो खिड़कियों से तीन पीढ़ियों का रहन सहन दिखता है। बॉलीवुड के लेटेस्ट गाने बज रहे हो तो देखे बिना भी पता चल जाता है कि आज पोते की शाम घर पर गुजर रही है। कभी-कभी लड़का खिड़की के पास शर्मीली हँसी के साथ किसी से बातें करता नज़र आता है। नौजवान पोते के दोस्त घर पर कभी नहीं दिखे, हाँ, पर बिल्डिंग की पार्किंग में जन्मदिन पर केक चहरों पर बरबाद करते जरूर दिखे हैं। लेकिन पति-पत्नी के जान पहचान वाले अकसर आते हैं। एक शाम 10 फीट दूर इस खिड़की से पार्टी का महौल दिखा। पहले कमरे में लोगों का जमावड़ा था। शरबत, चिप्स, पकोड़े भी दिख रहे थे, कुछ प्यारी सी महक मेरे फ्लैट में भी भीन चुकी थी। पर दादी पहले कमरे में नहीं दिख रही थीं वो उस घर की दूसरी खिड़की पर अकेले बैठीं थीं। वो उनकी पार्टी नहीं थी। और जैसा मैंने कहा कि ना आसमाँ दिखता है ना ज़मीन, फिर भी वो खिड़की से जाने क्या देख रही थीं।
मैं भी अकेली थी। मैं भी खिड़की पर बैठी थी, ना ज़मीन देख रही थी ना आसमान। वो पार्टी मेरी भी नहीं थी पर मैं झाँक रही थी औरों की जिंदगी में। मैं भी उनकी खिड़की से दिखने वाली 12 और खिड़िकयों में सिमटे 6 घरों में से एक थी। उनके लिए भी मेरी बस यही पहचान थी – वो लड़की जो अकसर खिड़की पर अकेले दिखा करती है। मैं भी 12 खिड़कियों में से एक की कहानी हूँ जिसका कोई नाम नहीं। इन घरों में क्या घट रहा है सबको दिख रहा है, पर कभी चर्चा नहीं होती, कोई बात नहीं होती, हाल-चाल नहीं पूछा जाता। यही मायानगर है, मेरा होना सिर्फ एक खिड़की तक है। यही मेरी खिड़की की सीमा है
A hundred lives lost, a hundred others shattered. A hundred memories marred, a hundred childhoods wrecked.
Of all the scars of terror India has witnessed, 26/11 is the ugliest. It was different. Delhi had always been the target; it was the financial capital Mumbai where chances were considered seldom. For the first time, highly trained terrorists in Pakistan used the sea route to enter the Indian Territory. 10 young men of Lashkar-e-Taiba, carried out one of the deadliest series of 12 coordinated shooting and bombing attacks lasting four days across Mumbai, beginning on 26 November 2008. The attacks that continued till 29th Nov killed 164 people and wounded at least 308.
With Jahnvi Shrimankar performing live, Actress Bhumi Pednekar of Naitonal Award winning Dum Laga Ke Haisha fame, walked for the first time for any designer on the ramp in a sandstone embellished bespoke lantern lehenga with handcrafted bustier and jacket, turning showstopper for Designers Sonam and Paras Modi. .
Continue reading “A Slice of Morocco: Bhumi Pednekar Debuts on the Ramp”