अहो क्या बात हुई
कि घर लड़की ना आई
कहीं दिवानी फिरती वो
नाम डुबा ना आई|
बरसाती आधी रात गई
ना ख़बर करी
कई परवाने हुआ होंगे
जो बला बुलाती कहीं
उन्हीं में उसकी रात कटी?
लगे पड़ोसी बात बनाने
कि क्या बात हुई,
कि रात गई पर
घर लड़की ना आई?
पिता आँख फिर अनल भरी
जो आई ना भीतर एक घड़ी
तो मुहँ फेरे उल्टे लौट चले
जो आ गई नज़र, गर हाथ पड़ी
तो ख़ुदा ख़ैर करे उसकी
वो दोज़ख की आग जले |
आग जले, आग जले|
गला कलम ना किया अगर,
तो मैं भी उसका बाप नहीं|
March 19, 2017 at 7:59 pm
समाज की विकृत सोच पर चोट करती गहरी पंक्तियाँ हैं। बहुत खूब
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